आयुर्वेद के
अलावा भारत की स्थानीय संस्कृति में कई चमत्कारिक पौधों के बारे में पढ़ने
और सुनने को मिलता है। एक ऐसी जड़ी है जिसको खाने से जब तक उसका असर रहता
है, तब तक व्यक्ति गायब रहता है। एक ऐसी जड़ी-बूटी है जिसका सेवन करने से
व्यक्ति को भूत-भविष्य का ज्ञान हो जाता है। कुछ ऐसे भी पौधे हैं जिनके बल
पर स्वर्ण बनाया जा सकता है। इसी तरह कहा जाता है कि धन देने वाला पौधा
जिनके भी पास है, वे धनवान ही नहीं बन सकते बल्कि वे कई तरह की चमत्कारिक
सिद्धियां भी प्राप्त कर सकते हैं।
क्या सचमुच होते हैं इस तरह के पौधे व
जड़ी-बूटियां और क्या आज भी पाए जाते हैं? हो सकता है कि आपके आसपास ही हो
इसी तरह का पौधा या ढूंढने से मिल जाए आपको ये चमत्कारिक पौधे। तब तो आपको
हर तरह की सुख और सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं। जड़ी-बूटियों के माध्यम से
धन, यश, कीर्ति, सम्मान आदि सभी कुछ पाया जा सकता है।
10 आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां : दूर करें हर समस्या
कहां है चमत्कारिक कल्पवृक्ष, जानिए
हिन्दू धर्म : ये दस चमत्कारिक पत्तियां
ये तो सभी जानते हैं कि पौधों में शारीरिक
और मानसिक रोगों को दूर करने की क्षमता के अलावा वास्तुदोष मिटाने की
क्षमता भी है इसीलिए कुछ लोग अपने मकान के बगीचे में इसी तरह के पौधे लगाते
भी हैं। कई पौधे तो ऐसे हैं जिनके घर में होने से धन और समृद्धि बढ़ती है
तो कई असाधारण चमत्कार से संपन्न होते हैं। आइए, जानते हैं इसी तरह के 10
चमत्कारिक पौधों के बारे में विस्तृत जानकारी।
यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो।। (ऋग्वेद-1/5/5)
1. सोमवल्ली : प्राचीन
ग्रंथों एवं वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख
मिलता है। अनादिकाल से देवी-देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें
बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। बताया जाता है कि रीवा जिले के घने
जंगलों में यह पौधा आज भी पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma
acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियां होती हैं।
'सोमरस' : शराब या चमत्कारिक औषधि, जानिए विस्तार से....
प्राचीन ग्रंथों व वेद-पुराणों में
सोमवल्ली पौधे के बारे में कहा गया है कि इस पौधे के सेवन से शरीर का
कायाकल्प हो जाता है। देवी-देवता व मुनि इस पौधे के रस का सेवन अपने को
चिरायु बनाने एवं बल सामर्थ्य एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया करते
थे। इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते। यह पौधा सिर्फ डंठल के
आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता
भी कहा जाता है।
ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह
वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि
इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात
कही गई है।
सोम को स्वर्गीय लता का रस और आकाशीय
चन्द्रमा का रस भी माना जाता है। ऋग्वेद अनुसार सोम की उत्पत्ति के दो
प्रमुख स्थान हैं- 1. स्वर्ग और 2. पार्थिव पर्वत।
सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा
जाता है। उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की
पत्तियां। सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के
अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरि, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय
क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने के जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं
कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे
बादामी रंग का पौधा है।
इफेड्रा : कुछ वर्ष पहले
ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की
छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में
तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान
के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है।
हालांकि लोग इसका इस्तेमाल यौनवर्धक दवाई के रूप में करते हैं।
'संजीवनी बूटी' : कुछ
विद्वान इसे ही 'संजीवनी बूटी' कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का
वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और
लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर
'सोम' की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के
वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।
2. हत्था जोड़ी : माना जाता
है कि हत्था जोड़ी को अपने पास रखने से लोग आपको सम्मान देने लगते हैं। यह
एक विशेष प्रकार का पौधा होता है जिसकी जड़ खोदने पर उसमें मानव भुजा जैसी
दो शाखाएं निकलती हैं इसके सिरे पर पंजा जैसा बना होता है। यह पूर्णत: मानव
हाथ के समान होता है इसीलिए इसे हत्था जोड़ी कहते हैं।
दरअसल, अंगुलियों के रूप में उस पंजे
की आकृति ठीक इस तरह की होती है, जैसे कोई मुट्ठी बांधे हो। जड़ निकलकर
उसकी दोनों शाखाओं को मोड़कर परस्पर मिला देने से करबद्ध की स्थिति बनती
है। इसके पौधे प्राय: मध्यप्रदेश के जंगलों में पाए जाते हैं।
हत्था जोड़ी बहुत ही शक्तिशाली व
प्रभावकारी है। यह एक जंगली पौधे की जड़ होती है। माना जाता है कि मुकदमा,
शत्रु संघर्ष, दरिद्रता आदि के निवारण में इसके जैसा चमत्कारी पौधा कोई
दूसरा नहीं। तांत्रिक विधि में इसके वशीकरण के उपयोग किए जाते हैं। हालांकि
इसमें कितनी सचाई है, यह हम नहीं जानते।
माना जाता है कि जिसके पास यह होती है उस
पर मां चामुण्डा की असीम कृपा स्वत: ही होने लगती है और ऐसे व्यक्ति को
किसी भी कार्य में सफलता मिलती रहती है। यह धन-संपत्ति देने वाली बहुत ही
चमत्कारी जड़ी मानी गई है। कहा जाता है कि इसे जंगल में से लाने के पूर्व
इसको किसी विशेष दिन जाकर निमंत्रण दिया जाता है, तब उक्त दिन जाकर उसको
लाया जाता है फिर किसी खास मंत्र द्वारा इसे सिद्ध करने के बाद ही पास में
रखा जाता है।
सिद्ध करने के बाद इसे लाल रंग के कपड़े
में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दिया जाता
है। इससे आय में वृद्घि होती है और सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है।
3. तेलिया कंद : इसकी जड़ों
से तेल का रिसाव होता रहता है इसीलिए इसे तेलिया कंद कहते हैं। माना जाता
है कि यह पौधा सोने के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहते हैं
कि यह किसी विशेष निर्माण विधि से पारे को सोने में बदल देता है, लेकिन
इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता। हालांकि माना जाता है कि इसका
मुख्य गुण सांप के जहर को काटना है।
पहले प्रकार को पुरुष और दूसरे को
स्त्रैण तेलिया कंद कहते हैं। इसमें सिर्फ पुरुष प्रकार के तेलिया कंद में
ही गुण होते हैं। इसकी पहचान यह है कि इसके कंद को सूई चुभो देने भर से ही
तत्काल वह गलकर गिर जाता है। इसका कंद शलजम जैसा होता है। यह पौधा सर्पगंधा
से मिलते-जुलते पत्ते जैसा होता है।
माना जाता है कि तेलिया कंद का पौधा 12
वर्ष उपरांत अपने गुण दिखाता है। प्रत्येक वर्षाकाल में इसका पौधा जमीन से
फूटता है और वर्षाकाल समाप्त होते ही समाप्त हो जाता है। इस दौरान इसका कंद
जमीन में ही सुरक्षित बना रहता है। इस तरह जब 12 वर्षाकाल का चक्र पूरा हो
जाता है, तब यह पौधा अपने चमत्कारिक गुणों से संपन्न हो जाता है। इसके
आसपास की जमीन पूर्णत: तेल में लबरेज हो जाती है।
4. श्वेत अपराजिता : श्वेत
अपराजिता का पौधा मिलना कठिन है। हालांकि नीले रंग का आसानी से मिल जाता
है। श्वेत आंकड़ा और लक्ष्मणा का पौधा भी श्वेत अपराजिता के पौधे की तरह
धनलक्ष्मी को आकर्षित करने में सक्षम है। इसके सफेद या नीले रंग के फूल
होते हैं। अक्सर सुंदरता के लिए इसके पौधे को बगीचों में लगाया जाता है।
इसमें बरसात के सीजन में फलियां और फूल लगते हैं।
संस्कृत में इसे आस्फोता,
विष्णुकांता, विष्णुप्रिया, गिरीकर्णी, अश्वखुरा कहते हैं जबकि हिन्दी में
कोयल और अपराजिता। बंगाली में भी अपराजिता, मराठी में गोकर्णी, काजली,
काली, पग्ली सुपली आदि कहा जाता है। गुजराती में चोली गरणी, काली गरणी कहा
जाता है। तेलुगु में नीलंगटुना दिटेन और अंग्रेजी में मेजरीन कहा जाता है।
दोनों प्रकार की कोयल (अपराजिता), चरपरी
(तीखी), बुद्धि बढ़ाने वाली, कंठ (गले) को शुद्ध करने वाली, आंखों के लिए
उपयोगी होती है। यह बुद्धि या दिमाग और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है तथा
सफेद दाग (कोढ़), मूत्रदोष (पेशाब की बीमारी), आंवयुक्त दस्त, सूजन तथा जहर
को दूर करने वाली है।
5. पलाश : पलाश के फूल को
टेसू का फूल कहा जाता है। इसे ढाक भी कहा जाता है। यह बसंत ऋतु में खिलता
है। पलाश 3 प्रकार का होता है- एक वह जिसमें सफेद फूल उगते हैं और दूसरा वह
जिसमें पीले फूल लगते हैं और तीसरा वह जिसमें लाल-नारंगी फूल लगते हैं। माना
जाता है कि सफेद पलाश के फूल की एक गूटिका बनती है जिसे मुंह में रखने के
बाद आदमी तब तक गायब रहता है जब तक की गूटिका पूर्णत: गल नहीं जाए।
तीनों ही तरह के पलाश के कई चमत्कारिक
गुण हैं। माना जाता है कि सफेद पलाश के पत्तों से पुत्र की प्राप्ति की जा
सकती है, जबकि इसके पौधे के घर में रहने से धन और समृद्धि बढ़ती है।
इसके पांचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और
बीज से दवाएं बनाने की विधियां दी गई हैं। इस पेड़ से गोंद भी मिलता है
जिसे 'कमरकस' कहा जाता है। इससे वीर्यवान बना जा सकता है। पलाश पुष्प पीसकर
दूध में मिलाकर गर्भवती माताओं को पिलाने से बलवान संतान का जन्म होता है।
पलाश के पत्ते, डंगाल, फल्ली तथा जड़ तक
का बहुत ज्यादा महत्व है। पलाश के पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोने-पत्तल
बनाने के लिए करते हैं जबकि इसके फूलों से होली के रंग बनाए जाते हैं।
हालांकि इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की
फलियां कृमिनाशक का काम करती हैं। इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है।
इसके फूल के उपयोग से लू को भगाया जा सकता है, साथ ही त्वचा संबधी रोग में
भी यह लाभदायक सिद्ध हुआ है।
सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा व
चांदी में मड़े हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रित कर तिजोरी में रखें।
इससे धन-संपत्ति बढ़ती है। माना जाता है कि पलाश के पीले फूल से सोना बनाया
जा सकता है। प्राचीन साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है।
6. बांदा : बांदा, वांदा
अथवा बंदाल नाम की परोपजीवी वनस्पति प्रात: सभी बड़े वृक्षों पर उग जाती
है, जैसे आम, पीपल, महुआ, जामुन आदि। इसके पतले, लाल गुच्छेदार फूल और मोटे
कड़े पत्ते पीपल के पत्ते के बराबर होते हैं। हालांकि बहुत से अलग-अलग भी
बांदा होते हैं, जैसे पीपल का पेड़ किसी भी दूसरे पेड़ पर उग आता है तो उसे
पीपल का बांदा कहते हैं। इसी तरह नीम, जामुन आदि के बांदा भी होते हैं।
तंत्रशास्त्र के अनुसार प्रत्येक पेड़ पर उगा बांधा एक विशेष फल देता है।
बांदा का धार्मिक और कई मामलों में
तांत्रिक महत्व भी है। कहते हैं कि भरणी नक्षत्र में कुश का वांदा लाकर
पूजा के स्थान पर रखने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। पुष्प नक्षत्र
में इमली का वांदा लाकर दाहिने हाथ में बांधने से कंपन के रोग में आराम
मिलेगा। मघा नक्षत्र में हरसिंगार का वांदा लाकर घर में रखने से समृद्धि
एवं संपन्नता में वृद्धि होती है। विशाखा नक्षत्र में महुआ का वांदा लाकर
गले में धारण करने से भय समाप्त हो जाता है। डरावने सपने नहीं आते हैं।
शक्ति (पुरुषत्व) में वृद्धि होती है।
बरगद का बांदा बाजू में बांधने से हर
कार्य में सफलता मिलती है और कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता। अनार का
बांदा पूजा करने के बाद घर में रखने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती और न ही
भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश होता है। बेर के बांदे
को विधिवत तोड़कर लाने के पश्चात देव प्रतिमा की तरह इसको स्नान करवाएं व
पूजा करें। इसके बाद इसे लाल कपड़े में बांधकर धारण कर लें। इस प्रकार आप
जो भी इससे मांगेंगे, वह सब आपको प्राप्त होगा।
हरसिंगार के बांदे को पूजा करने के बाद
लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें तो आपको कभी धन की कमी नहीं होगी। आम
के पेड़ के बांदे को भुजा पर धारण करने से कभी भी आपकी हार नहीं होती और
विजय प्राप्त होती है।
7. सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : गुलतुरा
(दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक),
भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य
(तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक
(ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष
नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।
बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता),
श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका
(दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक
जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में
महत्वपूर्ण मानी गई हैं।
8. कीड़ा घास : कीड़े जैसी
दिखने के कारण उत्तराखंड के लोग इसे कीड़ा घास कहते हैं। तिब्बती भाषा में
इसको 'यारसाद्-गुम-बु' कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु में घास
और शीत ऋतु में जंतु। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यर्सी गंबा हिमालयी
क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहां पाए जाने वाले एक कीड़े के जीवनचक्र के
अद्भुत संयोग का परिणाम है।
कहते हैं कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एवं
चमोली जिले के 3,500 मीटर की ऊंचाई के एल्पाइन बुग्यालों में यह घास पाई
जाती है। तिब्बती साहित्य के अनुसार यहां के चरवाहों ने देखा कि जंगलों में
चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास, जो कीड़े के समान दिखाई देती
है, को खाकर हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास एक
चमत्कारी औषधि के रूप में अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी।
यह नारंगी रंग की एक पतली जड़ की तरह दिखाई
देती है जिसका भीतरी भाग सफेद होता है। इसका ऊपरी भाग एक स्प्रिंग की
भांति घुमावदार होता है जिस पर झुर्रियां होती हैं। इन झुर्रियों के कारण
ही यह इल्लड़ जैसी लगती है। इन झुर्रियों की मुख्य रचना में 7-8 आकृतियां
झुंड के रूप में मिलती हैं। इनमें बीच की रचनाएं बड़ी एवं महत्वपूर्ण होती
हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ये झुंड वस्तुत:
कार्डिसेप्स नामक फफूंद के सूखे हुए अवशेष होते हैं। उनके अनुसार इस घास
में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड
तथा कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार
के विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए
अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महीने से
धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक
यह पूर्णतया विलुप्त हो जाती है।
यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी
व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं
पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों में इसका प्रयोग
लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों की कठोरता
को भी यह कम करता है। कुल मिलाकर यह आपकी बढ़ती आयु को रोकने में सक्षम है।
9. भूख-प्यास को रोके जड़ी : वेदादि
ग्रंथों के अलावा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जड़ी-बूटी, दूध आदि से
निर्मित ऐसे आहार का विवरण है जिसके सेवन के बाद पूरे महीने भोजन की जरूरत
नहीं पड़ती।
कहते हैं कि आंधीझाड़ा से अत्यधिक भूख लगने
(भस्मक रोग) और अत्यधिक प्यास लगने का रोग समाप्त किया जा सकता है। अर्थात
जो लोग ज्यादा खाने के शौकीन हैं और मोटापे से ग्रस्त हैं वे इस जड़ी का
उपयोग कर भूख को समाप्त कर सकते हैं।
इसे संस्कृत में अपामार्ग, हिन्दी में
चिरचिटा, लटजीरा और आंधीझाड़ा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रफ चेफ ट्री नाम
से जाना जाता है। यह पौधा 1 से 3 फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह घास
के साथ अन्य पौधों की तरह पैदा होता है। खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के
किनारे, झाड़ियों में इसे सरलता से पाया जा सकता है।
10. ब्राह्मी : ब्राह्मी को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है।
यह बुखार, स्मृतिदोष, सफेद दाग, पीलिया,
प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन में भी
लाभदायक है। ब्राह्मी का उपयोग दिल और दिमाग को संतुलित करने के लिए लिए भी
किया जाता है।
कहा जाता है कि इसका सही मात्रा के अनुसार सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगता है।
ब्राह्मी : जटामासी, शंखपुष्पी, जपा,
अखरोट की तरह ब्राह्मी भी दिमाग और नेत्र के लिए बहुत ही उपयोगी है।
ब्राह्मी नाम से कई तरह के टॉनिक बनते हैं। ब्राह्मी दरअसल एक जड़ी है, जो
दिमाग के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह दिमाग को शांत कर स्थिरता प्रदान करती
है, साथ ही यह याददाश्त बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
योग और आयुर्वेद के
अनुसार बाह्मी से हमारे चक्र भी सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि इससे
दिमाग के बाएं और दाएं हेमिस्फियर संतुलित रहते हैं। ब्राह्मी में एंटी
ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ने लगती है।
सेवन : आधे चम्मच
ब्राह्मी के पावडर को गरम पानी में मिला लें और स्वाद के लिए इसमें शहद
मिला लें और मेडिटेशन से पहले इसे पीएं तो लाभ होगा। इसके 7 पत्ते चबाकर
खाने से भी वही लाभ मिलता है।
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